उन दिनों मैं टोंक ज़िले (राजस्थान) के कुछ सरकारी स्कूलों के साथ काम कर रहा था | बच्चों व टीचर के साथ काम करने का बिलकुल भी अनुभव नहीं था | थोड़ा बहुत रंगमंच का अनुभव ज़रूर था | इसी के बूते स्कूल में पाँव रखने की हिम्मत कर सका | और कुछ नहीं तो बच्चों के साथ मस्ती करेंगे | काम करते - करते सीख जायेंगे | यूँ तो हमें कक्षा १ से ५ तक के लिए काम करना होता था लेकिन जिन स्कूलों में जाते थे वे अधिकतर उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा ६ - ८ ) के होते थे | ये बच्चे हमारे टारगेट ग्रुप में नहीं थे | जब हम छोटी कक्षाओं के साथ गतिविधियां करते तो ये बड़ी कक्षाओं के बच्चे भी हमें अपनी कक्षाओं में बुलाते | अकसर हम उनकी कक्षाओं में जाने से कतराते | एक कारण तो मैंने ऊपर बता दिया दूसरा संकोच यह था कि कक्षा ६-८ को पढाने की खुद की हैसियत भी नहीं समझते थे | कभी इन कक्षाओं में झाँकने का होसला ही नहीं बना | एक बार कुछ ऐसा हुआ कि मैं स्कूल के बरामदे से गुजर रहा था, इतने में ही कक्षा आठ के बच्चे आए और जबरन मेरा हाथ पकड़ कर अपनी क्लास में ले गए | “सर हमें भी पढ़ाओ|” मैंने उन्हें साफ-साफ कह दिया , “मुझे कक्षा ८ को पढाना बिलकुल नहीं आता है |” वे बोले “आप तो बस कुछ भी पढ़ा दो |”
“क्या पढ़ाऊ ?”
“कुछ भी |”
मैं उनकी किताबें लेकर उलट-पलट कर देखने लगा | हिंदी, गणित,सामाजिक, संस्कृत, विज्ञान … वही पहचाने-पहचाने से विषय, भूले बिसरे टॉपिक और विस्मृत-सी अवधारणाएँ … मैं अभी जमा खर्च को समेट ही रहा था और कोई रास्ता निकाल ही रहा था, इतने में एक विचार मेरे मन में कौंधा ! मैंने उनसे कहा “आप सवाल पूछो और मैं उनके जवाब देने की कोशिश करूँगा | जवाब नहीं आया तो मिल कर पता करेंगे |” यह कहते ही बच्चों ने मुझ पर सवालों की बोछार कर दी |
भारत में कितने राज्य है ?
राजस्थान में कुल कितने जिले है ?
सबसे ऊँची इमारत किस देश में है ?
सबसे बड़ा …
सबसे छोटा…
सबसे पुराना … जाने क्या-क्या ?
कुछ के जवाब मुझे पता थे कुछ के नहीं | जिनके जवाब मैं नहीं दे सका उनके जवाब झट से पूछने वाले ने दे दिए | ऐसा कोई सवाल नहीं था जिनके मतलब बच्चों को पता नहीं थे | उन्होंने सवाल और उनके जवाब कंठस्थ कर रखे थे | मैंने बच्चों से कहा, “ आपने सवाल क्यों पूछे ?” बच्चों ने कहा कि आपने पूछने के लिए कहा इसलिए पूछे | मैंने कहा ‘ सिर्फ पूछने के लिए ?’ उन्होंने हाँ कहा | मैंने फिर पूछा “ आप अपने टीचर से सवाल पूछते हैं क्या ?” वे मेरी बात पर हँसे फिर बोले “ सवाल तो टीचर हमसे पूछता है, हम नहीं !” मैंने बात को आगे बढ़ाया “ अब तक आपने मुझ से वे सवाल पूछे जिनके जवाब आपको पहले से पता थे , अब आप ऐसे सवाल पूछे जिनके जवाब आपको पता नहीं है लेकिन जानना चाहते हैं |” सब बच्चे चुप | भला ऐसा भी होता है क्या ! जैसा भाव उनके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था | यह बात उनको समझाने में मुझे बहुत जोर लगाना पड़ा कि आपके कुछ मौलिक सवाल हैं उनको पूछिए | मैंने उनको कहा कि रोज दिन आपके दिमाग में कुछ सवाल उठते रहते हैं लेकिन हम उनको तवज्जो नहीं देते हैं तथा संकोच के कारण भी नहीं पूछते हैं | या कभी पूछा भी लेकिन सही रेस्पोंस नहीं मिला | मैंने एक दो उधाह्र्ण भी बताया | थोड़ा समय लगा लेकिन बच्चों के सवाल आने लगे | यह धारा अभी सूखी नहीं |
हवा क्यों चलती है ?
भगवान किसने बनाया ?
सबसे पहला मास्टर कौन था ?
सबसे पहला डॉक्टर कौन था ?
जाति किसने बनाई ?
विश्व युद्ध क्या है ?
चुनाव क्यों होते हैं ?
धरती कैसे बनी ?
इस तरह के लगभग २५ सवाल आये | कुछ सवाल आपको वाहियात भी लग सकते हैं | यहाँ भी कुछ ऐसे सवाल थे जिनका जवाब मेरे पास नहीं था | शायद आपके पास …| जवाब नहीं है इस से सवाल की अहमियत कम नहीं होती | इस बार अपने अज्ञान को लेकर मुझे भी हीनता बोध नहीं हुआ बल्कि ताकत मिली कि इस मामले में हम टीचर- विद्यार्थी एक बराबर है | दोनों की जरूरतें एक सामान हैं | दोनों ही जानना चाहते हैं | हमने तय किया कि हम सारे सवालों पर आगे के दिनों में खूब बातचीत करेंगे और जवाबों तक पहुँच कर रहेंगे | मैंने गौर किया कि सभी सवाल उनकी किसी ना किसी किताब के टॉपिक से मेल खाते थे | अगर इन टॉपिक को पढाने का entry point टीचर इन सवालो को बनाये तो बच्चे आसानी से विषय से जुड़ते हैं | क्योंकि जानने की इच्छा उनकी खुद की है | किताब के सारे पाठ उनकी सहज जिज्ञासाओं और सवालों कि जद में आते है | बशर्ते उनकी जिज्ञासाओं व सवालों को प्रकट करने के मौके उनको मिलें | उनको यह भरोसा भी मिले कि सवाल पूछना वर्जित नहीं है | इन सवालों के मार्फत उनको किताब के सारे टॉपिक खुद से जुड़े जान पड़ेंगे | अन्यथा इनके नीरस होने में कोई कसर नहीं है | यह एक दिन की गतिविधि मात्र नहीं होनी चाहिए सवाल पूछने के ऐसे अवसर और अभ्यास बार-बार देने होंगे | तब जाकर यह मिथक टूटेगा कि सवाल पूछना तो टीचर का काम है |