रविवार, 27 मार्च 2011

एक चीज़ जो नहीं बदली

एक चीज़ जो नहीं बदली
दोपहर में अचानक शोर हुआ ‘आग लग गई’ | मैं शोर की दिशा में दौड़ा | जाकर देखा पीरू का छप्पर धू –धू कर जल रहा था | लगभग पूरा गांव वहाँ इकट्ठा था | लोग पीरू के छप्पर की तरफ दौड़े जा रहे थे | किसी के हाथ बाल्टी, किसी के मटकी थी | कोई खेत से आ रहा था कोई कोई घर से और कोई स्कूल से | पीरू का घर हरिजन मोहल्ले में है | पीरू छप्पर में ही था | गांव के एक युवक की नजर पड़ी | उसने भाग कर चारपाई पर लेटे पीरू को उठाकर बाहर लाया | लोगों को आवाज लगाई | पीरू इन दिनों चारपाई पकड़ चुका है | किसी समय पीरू गांव का हरकारा हुआ करता था | बुलंद आवाज़ , गांव के एक कोने से खड़े होकर होका लगाये तो पास के गांव तक आवाज जाती थी | अवसर कोई भी हो ; चाहे राशन का सामान वितरण की सूचना हो ,शोर्ट नोटिस पर बुलाई गांव की बैठक हो या फिर आकस्मिक रूप से घटी कोई विपत्ति की सूचना हो पीरू हर सूचना क्षण भर में पूरे गांव पहुंचाता | पहले गांव में दसियों बार आग लगने की घटना होती थीं | तब अधिकांश घर कच्चे हुआ करते थे | जरा सी असावधानी से आग लग जाया करती थी | पीरू तुरंत होका लगा देता था और पूरा गांव एकजुट होकर आग बुझा देता था | यह गांव के सूचना प्रबंधन और एकजुटता का ही कमाल था कि आज तक आग से कोई जन हानि नहीं हुई | अब वक्त ऐसा आया है की सारे गाँव को अलर्ट करने वाला पीरू खुद के मकान में आग लगने के बाद निकल कर बाहर भी नहीं आ सका | तब से लेकर अब तक गांव में बहुत कुछ बदला है टी वी आया है , खेती के लिए ट्रेक्टर आए हैं , बिजली आई साथ – साथ सड़क भी आई सड़क से होकर पेप्सी कोका भी आये | पेप्सी के साथ पेप्सिनुमा कल्चर भी आया | हालाँकि जातपात अभी भी है | मगर इसके भी कुछ पेच ढीले हुए हैं | मगर एक चीज़ है जो बिलकुल नहीं बदली वह है गांव के सामूहिक अवचेतन में कहीं गहरे बैठा हुआ एक जज्बा कि जब विपदा आती है तो सबसे आगे रहना चाहिए | उसमे जाति या दूसरे अवरोध रोक नहीं पाते | आग में पानी डाल रहे अनेको मटके और बाल्टियों में अनेक ऐसी हैं जिनको अभी भी पीरू जैसे व्यक्ति को छूने कि छूट नहीं है |लेकिन उस वक्त न बाल्टी रुकी न मटका और न इंसान | कुछ क्षणों के लिए वहां इंसान अपनी विशुद्ध खूबसूरती के साथ मौजूद था | यहाँ एक बात जो विशेष रूप से उल्लेखनीय है वह यह है कि इस वक्त जो युवक लीडरशिप रोल में उभर कर आगे आया वह गांव का सबसे निखट्टू और वाहियात समझा जाने वाला युवक था | लेकिन जिस प्रकार वह आग में से जलने से बचने के लिए सामान अपनी जान जोखिम में दल कर निकाल रहा था वह देखने लायक था | इसी के फलस्वरूप साथ सटे हुए तीन छप्परो के एक तिनके को भी सेक नहीं लगा | मेरे गांव में यह दृश्य बिलकुल नहीं बदला | रब करे यह दृश्य हमेशा के लिए फ्रीज़ हो जाये |
गांव में कुछ मूल्य हैं जो बिलकुल नहीं बदले हैं | कुछ चीजों में इतना और तेजी से बदलाव आया है कि लगता है कि हमारा मूल्यबोध ही उलट गया है | कुछ चीजों में बदलाव होना बेहद जरूरी है | इसके रस्ते कई हैं | गाँधी वादी भी और मार्क्सवादी भी या कोई और... लेकिन इसकी बुनियाद उसी नब्ज को पकड़ कर रखनी होगी जो वक्त बेवक्त इंसान को इंसान के पास ला खड़ा करती है | जो थोड़ी देर तक यह उद्घोष कर देती है कि जरूरतों के मामले में हम एक से हैं और हमारी विवशताएँ भी एक सी हैं |